मौलाना अबुल कलाम आजाद के विचार आज भी प्रासंगिक: डॉ. बत्रा









हरिदवार एसएमजेएन कॉलेज के प्राचार्य डा. सुनील कुमार बत्रा का कहना है कि दिल से दी गई शिक्षा समाज में क्रान्ति ला सकती है। एक शिक्षित समाज से ही श्रेष्ठ राष्ट्र का निर्माण हो सकता है। यह बात डॉ. बत्रा ने सोमवार को सोमवार को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस तथा मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्मदिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कहे। उन्होंने कहा कि मौलाना अबुल कलाम आजाद के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। डा. बत्रा ने कहा कि शिक्षित समाज में नवीन चिंतन, नवीन ज्ञान, नवीन तकनीक का उदय होता है जो राष्ट्र को तीव्र गति से आगे बढ़ाता है। मौलाना आजाद देश के पहले शिक्षा मंत्री थे। मौलाना आजाद ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने उस समय देश में यूजीसी, आईआईएम तथा आईआईटी जैसे संस्थानों की नींव रखी। साम्प्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उन्होंने वर्ष 1912 में एक साप्ताहिक पत्रिका निकालना प्रारम्भ किया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर उन्होंने 'इंडिया विंस फ्रीडम नामक पुस्तक 1957 में प्रकाशित की। डॉ. बत्रा ने कहा कि मौलाना कलाम आजाद के शिक्षा में दिए गए योगदानों को देखते हुए 1992 में उनको 'भारत-रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे पर्यावरण के प्रति भी चिन्तित थे इसलिए उन्होंने कहा था कि फल-फूलों के पेड़-पौधे बहुत लोग लगाते हैं। यह आवश्यक नहीं कि उनके फल भी उन्हें उपलब्ध हों। लेकिन यह आने वाली पीढ़ी को अवश्य ही संजीवनी प्रदान करते हैं। संचालन करते हुए अधिष्ठाता छात्र कल्याण डा. संजय कुमार माहेश्वरी ने कहा कि मौलाना अबुल कलाम आजाद उच्च शिक्षा के साथ-साथ देश के निर्माण के लिए प्राथमिक शिक्षा को भी महत्वपूर्ण मानते थे। इस अवसर पर डा. नलिनी जैन, विनय थपलियाल, विनीत सक्सेना, डा. पदमावती तनेजा, स्वाति चोपड़ा, नेहा सिद्दकी, डा. प्रज्ञा जोशी, प्रीति लखेड़ा, रचना राणा आदि शामिल थे।














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